हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने निजी क्षेत्र की नौकरियों में हरियाणा के मूल निवासियों को 75 प्रतिशत आरक्षण देने के अपने सबसे बड़े और विवादास्पद चुनावी वादे को पूरा किया है. साथ ही भाजपा के साथ मिल जाने के बाद जाट समुदाय में फैले गुस्से को सफलतापूर्वक प्रशंसा में भी बदला है.

राजस्थान के सचिन पायलट ही नहीं, बिहार, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री भी राज्य के मुख्यमंत्रियों की छाया में अपनी राजनीतिक जमीन पर दावा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच एक उपमुख्यमंत्री ऐसे हैं जिन्होंने अपने राज्य के सीएम को पछाड़ दिया है.
“दुष्यंत चौटाला ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में जाट प्राइड को अपना चुनावी मुद्दा बनाया था. आज, वो किसान नेता और अपने परदादा चौधरी देवीलाल से जुड़े नॉस्टैलजिया को वापस ले आए हैं. वो अपने विधायकों को भी अपने पाले में रखने में कामयाब रहे हैं. उन्होंने ये सब भाजपा के सीएम मनोहर लाल खट्टर को बिना नाराज़ किए किया है. हरियाणा में कई लोग दोनों के बीच समान भागीदारी के उदाहरण की बात करते हैं.”
राजस्थान और मध्य प्रदेश में राजनीतिक नाटक के पीछे कथित रूप से भाजपा एक प्रमुख खिलाड़ी रही है. लेकिन हरियाणा का एक अलग माहौल है. भाजपा दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के विधायकों को लुभा नहीं पाई है. चौटाला और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बीच बराबर की साझेदारी है. चौटाला की राजनीतिक पैंतरेबाजी काफी दिलचस्प है, खासकर हरियाणा में अक्टूबर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उनके विरोध को देखते हुए.
सरकार में है चौटाला का अपना अलग दबदबा -
विधानसभा की 90 सीटों में से 10 सीटें जीतकर सत्ता में आने वाली जेजेपी को खट्टर के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में 11 विभाग दिए गए हैं. वैश्विक स्तर पर चल रहे स्वास्थ्य आपातकाल और देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान इनमें से कई विभागों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इससे ये भी सुनिश्चित किया गया कि जनता के सामने डिप्टी सीएम खुद सीएम से ज्यादा दिखाई दिए हों. इसके साथ ही किसान नेता देवीलाल के लिए भी नॉस्टैलजिया को पुनर्जीवित करने के अपने प्रयास में चौटाला ने फेसबुक लाइव किए. उन्होंने खेतों में फसल काट रहे किसानों से सीधे वीडियो कॉल किए.
कैबिनेट की बैठकों में भी चौटाला ने अपने विचारों से प्रभावित किया. वो कहते हैं कि इस युवा नेता ने यह सुनिश्चित किया है कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज और खट्टर के बीच मतभेदों के मद्देनज़र सीएम की उनपर निर्भरता बढ़े.