हरियाणा में पिछले कुछ समय से रजिस्ट्रियों में भ्रष्टाचार का मामला काफी चर्चाओं में है। सरकार के कई तन्त्र इसकी जांच कर रहे हैं। लेकिन कोई भी इसके पीछे नहीं जा रहा है कि आखिर यह खेल शुरू कैसे हुआ और सही में इसके जिम्मेदार हैं कौन। इसलिए आज हम रजिस्ट्रियों में इस भ्रष्टाचार की ए बी सी डी आपको बताएंगे। जो अब तक किसी ने नहीं बताया वो चौंकाने वाले खुलासे आज करेंगे। आइए आपको बताते हैं कि तीन साल पहले जो बातें दब कर रह गई थी उनका अब जानना क्यों जरूरी है। कैसे डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने पकड़ी गडबडी और सब अपने विभाग के ऊपर लेकर ठीक कर रहे हैं खामियां।

A. अब नहीं तीन साल पहले शुरू हुआ था खेल : आपको जानकर हैरानी होगी कि रजिस्ट्रियों में जिस भ्रष्टाचार की बातें अब सामने आई हैं वो अब नहीं बल्कि तीन साल पहले शुरू हुआ था। दरअसल शहरों से लगते पांच किलोमीटर के एरिया में खाली पड़ी जमीन को टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग 7-ए में अधिसूचित करता है और उसमें तय लिमिट से ज्यादा की रजिस्ट्री के लिए विभाग की एनओसी जरूरी होती है। 2017 से पहले नियम था कि 7-ए में आने वाली खाली और कृषि की जमीन की 1 हैक्टेयर यानी 2.5 एकड़ यानी करीब 20 कनाल से कम जमीन की रजिस्ट्री के लिए टाउन एंड प्लानिंग की एनओसी जरूरी होगी। लेकिन भाजपा सरकार ने पिछले प्लान में कुछ नेताओं को फायदा पहुंचाने के लिए इस लिमिट को केवल 2 कनाल रख दिया और केवल कृषि शब्द रह गया। खाली जमीन की कैटेगरी हटा दी गई। इसी का फायदा प्रोपर्टी डीलरों और अधिकारीयों ने उठाया।
B. 30 हजार एकड़ खेती की जमीन खत्म हो गई : आपको यह भी जानकार हैरानी होगी कि इस नियम में मिली ढील का फायदा उठाकर प्रोपर्टी डीलरों ने हरियाणा की 30 हजार एकड़ से ज्यादा खेती की जमीन खत्म कर दी और इस पर कालोनियां बसा दी। उन्होंने यह खेल कैसे किया यह भी आपको बताते हैं। क्योंकि 2 कनाल से ज्यादा जमीन की रजिस्ट्री के लिए एनओसी की जरूरत नहीं थी इसलिए वो इससे ज्यादा जमीन पर ही कालोनी काटते और तहसील में जाकर रजिस्ट्री करवा लेते। क्योंकि तहसीलदारों की मजबूरी थी कि वो उसके लिए एनओसी नहीं मांग सकते इसलिए उन्हें उनकी रजिस्ट्री करनी पडती। रजिस्ट्री होते ही खेती की जमीन गैर मुमकिन यानी गैर कृषि योग्य जमीन में बदल जाती थी। ऐसे करके कालोनियां बसती चली गई।
C. तहसील से ज्यादा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग जिम्मेदार : यह हम क्यों कह रहे हैं वो भी समझाते हैं। पहला कारण ये है कि तीन साल पहले जो नियम में ढील दी गई वो टाउन एंड कंट्री प्लानिंग का नियम था। इसी का प्रोपर्टी डीलरों ने फायदा भी उठाया। दूसरा कारण ये है क्योंकि 7-ए जमीन की रजिस्ट्री के लिए टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से एनओसी की जरूरत होती है उसके बावजूद उस जमीन की रजिस्ट्री हुई है तो उसके लिए जिम्मेदार भी तों एंड कंट्री प्लानिंग विभाग होगा। तीसरा कारण कई तहसीलों के अंदर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग ने अपने अधिकारी तहसीलों में इसकी देखरेख के लिए बिठा रखे थे, इसके बावजूद रजिस्ट्रियां कैसे हो गई। चौथा कारण जो हमारे सूत्रों ने बताया कि कई जगह टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के अधिकारीयों ने गलत तरीके से एनओसी दी हुई है लेकिन उसकी कोई जांच ही नहीं हुई। अभी तक जांच केवल तहसीलों में हो रही है, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग को सबसे ज्यादा जिम्मेदार है वहां जांच क्यों नहीं हो रही।

D. डिप्टी सीएम ने सब अपने ऊपर लिया :
आपको यह जानकार सबसे ज्यादा हैरानी होगी कि जब दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम बने तो उन्होंने सबसे पहले तहसीलों के कामकाज को समझा और उसके बाद सामने आया कि 7-ए की गलत तरीके से रजिस्ट्रियां हो रही हैं। इसलिए उन्होंने तुरंत इस पर रोक लगाई। इसके बाद खुद अपने विभाग के अंदर जांच करवाकर जिम्मेदार अधिकारीयों पर अब तक की सबसे सख्त कार्रवाई की। इतना ही नहीं उन्होंने टाउन एंड प्लानिंग विभाग की ज्यादा गलती हुए भी कभी उस पर ऊँगली नहीं उठाई बल्कि अपने विभाग के ऊपर जिम्मेदारी लेकर इसकी खामियां दूर करने में लगे रहे। यही कारण है कि अब रजिस्ट्रियों के लिए नया सॉफ्टवेयर आ गया है और इसकी प्रक्रिया पूरी तरह बदलने जा रही है। जिसमें फिर से तीन साल पहले वाले नियम आ रहे हैं। फिर से कृषि के साथ खाली जमीन की कैटेगरी जुड़ रही है और 2 कनाल की लिमिट खत्म करके 1 एकड़ की लिमिट होने जा रही है। वहीं डीसी रजिस्ट्री के लिए ओवरआल जिम्मेदार होंगे।